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Sunday 26 October 2014

मेरा एक अभी उपजा मुक्तक:


आज कुछ वक़्त,बदला सा लगे है.
वह भला इंसान, पगला सा लगे है.
आंख जैसी कल थी, वैसी है मगर,
सूर्य का प्रकाश,धुंधला सा लगे है.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

शुभ संध्या-संदेश:


मुक्तक-मात्रा भर-11
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हाथ बटाओ मीत.
हम जायेंगे जीत.
प्यार से निकलेगा,
सुन्दर-सुमधुर गीत.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Thursday 23 October 2014

शुभ संध्या संदेश-मुक्तक-अभी का:


शुभ संध्या लाये जीवन, में खुशियों की बारात.
नहीं लगे भूले से हमसे, अपनों को आघात.
सुख-दुख में हर पल हर क्षण,हम हों सारे एक,
कभी न आये फूटपरस्ती, हो न कभी आपात.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'






एक ताज़ा ग़ज़ल-दीपमालिका के पावन पर्व पर आप सभी को सादर भेंट .

धनतेरस और दीवाली की, आप व आपके स्वजनों को, हार्दिक बधाई -इस संदेश के साथ:
मेरी ताज़ा ग़ज़ल:
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अंधियारे को दूर भगाने, का अवसर है.
विद्वेषों के महल, ढहाने का अवसर है.
हो दुश्मन हावी, हमको जकड़े फिर से,
देश-प्रेम का अलख,जगाने का अवसर है.
आपस में हम रहें सदा, गुलदस्ते सा बन,
ऐसा इक माहौल, बनाने का अवसर है.
हृदयों का इक बाग़ लगे, अब इस जग में,
अब यह अनहद गीत, सुनाने का अवसर है.
निसचय कर लेखनी, सृजन में हो संदेश,
हृदयों को इक संग, मिलाने का अवसर है.
पड़े हुए हैं आलस में, जो बढ़हवाश हो कर,
अभी नींद से उन्हें, जगाने का अवसर है.
नेता जितने भूल गये, आश्वाशन-वादे-करतब को,
अभी वोट से, याद दिलाने का अवसर है.
किसी परिन्दे के पर, काट दिये जिसने भी अब,
उसे पकड़ अब, सबक सिखाने का अवसर है.
बगिया को सहरा, करनेवाले ज़ालिम को,
अब मिल-जुल कर, धूल चटाने का अवसर है.
खुसहाली में, ज़हर घोल खुश होने का,
अबसे चलन, मिटाने का अवसर है..
आती थी बहार तब, जिन सहराओं में ,
'सहज' वहीँ फिर,फूल खिलाने का अवसर है.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
 शुभ दीपावली-पूरी दुनियाँ के हर गरीब-अमीर-खास-आम को मेरी और परिवार की ओर से. इस बार कुछ इस तरह मनाएं- यह प्रकाशपर्व कि, हमारे दिलों से गरीब-अमीर-ऊंच-नीच-जाति-धर्म-सम्प्रदाय जैसे भेद-भावों के गढ़-मठ सभी ढहा दिये जाएं. सीमाविहीन दुनियाँ के स्थापना की नीव रक्खें- इस बार दिवाली में और परछिद्रान्वेषण की परंपरा को नेस्तनाबूद कर, सबमें अछाइयों को ही ढूंढें. नकारात्मकता को अलविदा कह दें और प्यार, से एक वृहद संयुक्त परिवार के रूप में, सभी भारतवासी रहना शुरू करें. सदाशयता भोजन में-प्रेम नाश्ते में-आदर भाव बड़ों के प्रति-प्यार छोटों के प्रति और घृणा से सदैव के लिये मुक्ति-ऐसा हमारा मिशन हो-अबसे जीवन भर के लिये. अवसर मिला है-रूठों को मनाने का-बिछड़ों को साथ लेने का-दुखियों को गले लगाने का-अकेलेपन से तप्त जन के आंसू पोछने का और देश की दरिद्रता हटाने का-जमाखोरों को बेनकाब कर उनसे हमारा हक़ छीन लेने का.ऐसे अनेक हैं जिन्हें सहारे की जरूरत है-उनको महसूस कराएं की इतने बड़े देश में-सवा अरब देशवासियों में कोई भी बेसहारा और अकेला नहीं और यदि ऐसा है तो हम सब उसे अपना सगा महसूस कराने का अभियां चलाएं. किसी भी पर्व का यही उद्देश्य होना चाहिये न कि सिर्फ खाना-पीना-मस्त रहना और स्वयं से अलग कुछ नहीं सोचना. सोने और खाने का नाम जीवन कदापि नहीं-जीवन नाम है अनवरत आगे बढ़ते रहने और सबको साथ लेकर चलने की अटूट लगन का. आइये आज जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें-एक ऐसा लक्ष्य, जिसमें एक सबके लिये -सब एक के लिये-सब सभी के लिये. तब पूरा होगा इस पुनीत पर्व का उद्देश्य. लक्ष्मी पूजा से नहीं-कर्म और सद्भाव से खुश होंगी. .देखें किसे अजीर्ण हुआ है और किस घर में भात नहीं' यदि ऐसा करने का अबियान छेड़ें और लक्ष्य तक पहुंचने से पूर्व चैन से नहीं बैठें तो आज के पर्व कि यही असली प्रासंगिकता होगी
और पर्व मनाने क़ा उद्देश्य भी पूर्ण होगा.
शुभेच्छु,
डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'